स्केलेरोडर्मा 


के संस्करण 2016
diagnosis
treatment
causes
Scleroderma
स्केलेरोडर्मा
स्केलेरोडर्मा एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ है सख्त चमडी। इस बीमारी में त्वचा चमकदार व सख्त हो जाती है। स्केलेरोडर्मा के दो भिन्न प्रकार हैं 1- सीमित (लोकलाइज्ड) 2- फैली हुयी (सिस्टेमिक) स्केलेरोडर्मा सीमित स्केलेरोडर्मा में बीमारी त्वचा व त्वचा के नीचे कोशिकाओं को प्रभावित करती है। इस बीमारी में आंख में यूवाइटिस व जोडों में गठिया रोग हो सकता है। यह एक धब्बे (मोरफिया) या एक सख्त लकीर की तरह (लीनियर स्केलेरोडर्मा) हो सकती है। सिस्टेमिक स्केलेरोडर्मा (या सिस्टेमिक स्केलेरोसिस) मे प्रक्रिया दूर तक फैली होती है और त्वचा के अतिरिक्त शरीर के अन्दरूनी अंग भी प्रभावित होते हैं। 1
evidence-based
consensus opinion
2016
PRINTO PReS
1.स्केलेरोडर्मा क्या है?
2.स्केलेरोडर्मा के विभिन्न पकार
3.रोजमर्रा की जिन्दगी



1.स्केलेरोडर्मा क्या है?

1.1 यह क्या है?
स्केलेरोडर्मा एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ है सख्त चमडी। इस बीमारी में त्वचा चमकदार व सख्त हो जाती है। स्केलेरोडर्मा के दो भिन्न प्रकार हैं 1- सीमित (लोकलाइज्ड) 2- फैली हुयी (सिस्टेमिक) स्केलेरोडर्मा
सीमित स्केलेरोडर्मा में बीमारी त्वचा व त्वचा के नीचे कोशिकाओं को प्रभावित करती है। इस बीमारी में आंख में यूवाइटिस व जोडों में गठिया रोग हो सकता है। यह एक धब्बे (मोरफिया) या एक सख्त लकीर की तरह (लीनियर स्केलेरोडर्मा) हो सकती है।
सिस्टेमिक स्केलेरोडर्मा (या सिस्टेमिक स्केलेरोसिस) मे प्रक्रिया दूर तक फैली होती है और त्वचा के अतिरिक्त शरीर के अन्दरूनी अंग भी प्रभावित होते हैं।

1.2 यह कितने लोगो मे पायी जाती है?
स्केलेरोडर्मा एक असामान्य बीमारी है और यह 100000 बच्चों में अधिक से अधिक 3 बच्चो में पायी जाती है। अधिकांश बच्चों में सीमित स्केलेरोडर्मा पाया जाता है। यह बीमारी लडकियों को विशेषतया प्रभावित करती है। सिर्फ 10 प्रतिशत स्केलेरोडर्मा से प्रभावित बच्चों में सिस्टेमिक स्केलेरोसिस होता है।

1.3 इस बीमारी के क्या कारण हैं?
स्केलेरोडर्मा प्रज्वलन वाली बीमारी है पर प्रज्वलन का कारण पता नही है। पर शायद यह एक आटोइम्यून बीमारी है जिसमें बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली उसके शरीर के विरूद्ध कार्य करने लगती है। प्रज्वलन के कारण सूजन, गर्मी व फाइबरस पदार्थ ज्यादा बनते हैं।

1.4 क्या यह आनुवंशिक है?
नही स्केलेरोडर्मा के आनुवंशिक होने के कोई सबूत नही है बावजूद इसके कि कुछ परिवारो में यह बीमारी एक से ज्यादा व्यक्ति मे पायी गयी है।

1.5 क्या इससे बचाव संभव है?
नही इससे बचने का कोई साधन नही है। इसका मतलब है कि माता-पिता व मरीज इस बीमारी को होने से रोकने के लिऐ कुछ नही कर सकते है।

1.6क्या यह छुआछूत की बीमारी है?
नही कुछ कीटाणुओ के संक्रमण से इस बीमारी की शुरुआत हो सकती है पर यह बीमारी संक्रामक नही है और प्रभावित बच्चे को दूसरों से अलग करने की आवश्यकता नही है।


2.स्केलेरोडर्मा के विभिन्न पकार

2.1 सीमित स्केलेरोडर्मा
2.1.1 सीमित स्केलेरोडर्मा की पुष्टि कैसे की जाती है?
चमडी का सख्त होना इस बीमारी की तरफ इंगित करता है। अधिकतर शुरूआत में दाग के चारो तरफ लाल या बैंगनी रंग की रेखा होती है जो प्रज्वलन को दर्शाती है। देर बाद गोरे लोगों में चमडी भूरी और फिर सफेद हो जाती है। इस दशा की पुष्टि चमडी के दाग को देख कर की जाती है।
लीनियर स्केलेरोडर्मा बांह या टांग पर लम्बी लकीर की तरह दिखायी देता है। इसमें चमडी के नीचे भाग जैसे मांसपेशियां और हड्डी भी प्रभावित हो सकते है। कभी-कभी लीनियर स्केलेरोडर्मा में चेहरे या सिर पर भी प्रभाव पड सकता है। खून की जांच प्रायः सही होती हैA अंदरूनी अंग भी प्रभावित नही होते।प्रायः चमडी के टुकडे की जांच बीमारी को पहचानने में मदद करती है।

2.1.2 सीमित स्केलेरोडर्मा का क्या इलाज है?
इलाज का मकसद प्रज्वलन को जल्दी से जल्दी रोंकना है। यह दवायें चमडी मोटी होने पर ज्यादा असर नहीं करती है। प्रज्वलन का अंतिम परिणाम शरीर का कडा होना है। इलाज का मकसद प्रज्वलन को रोकना अतः चमडी को कडा होने से रोकना है। जब एक बार प्रज्वलन रूक जाता है तो कडापन भी कम हो सकता है और चमडी फिर मुलायम हो सकती है।
इलाज, कोई दवा न देने से लेकर सेटरोइड या मेथोट्रेक्सेट के प्रयोग तक हो सकता है । इन दवा के कारगर होने व दुष्परिणाम न होने के प्रमाण उपलब्ध है। इस इलाज को बाल संधिवात विशेषज्ञ की देखरेख में लेना चाहिये। यह प्रक्रिया अपने आप कुछ सालों में ठीक हो सकती है और दोबारा उभर भी सकती है।
बहुत मरीजों में प्रज्वलन अपने आप रुक जाता है पर इसमें कुछ साल लग सकते है। कुछ में प्रज्जवलन कई सालों तक रहता है और कुछ में ठीक हो कर दुबारा हो जाता है। जिन मरीजों में गंभीर प्रज्जवलन रहता है उन्हें सख्त दवा देनी पड़ सकती है।
लीनियर स्केलेरोडर्मा मे फीजियोथेरैपी बहुत जरूरी है। यदि जोड़ के उपर की चमडी सख्त हो गयी है तो जोड़ को हिलाते रहना चाहिये। जरूरत पड़ने पर थोडे खिंचाव के साथ। यदि टांग प्रभावित हो तो दो टांगों की लम्बाई में फर्क आ सकता है जिससे लंगडापन हो सकता है। लंगडेपन से पीठ कूल्हे व घुटने के जोडो में अधिक खिंचाव पडता है। छोटे टांग के जूते के अंदर एड़ी लगाने से टांग की लम्बाई बराबर हो जाएगी और चलने भागने अ खड़े होने पर कोई स्ट्रेन नहीं पड़ेगा। क्रीम से सख्त चमड़ी की मालिश करने से चमड़ी मुलायम हो सकती है।
चेहरे पर दाग छुपाने के लिये क्रीम (डाई व प्रसाधन क्रीम) का इस्तेमाल किया जा सकता है।

2.1.3 लम्बे समय के बाद इस बीमारी में क्या होता है?
सिमित स्क्लेरोडर्मा कुछ सालों तक ही बढ़ता है। चमड़ी का कठोरपन कुछ सालों के बाद रुक जाता है पर बीमारी कई सालों तक सक्रिय रह सकती है। मॉरफेआ के दाग सिर्फ रंग बदल लेते है और कुछ समय बाद कठोर चमड़ी भी मुलायम हो जाती है। कुछ धब्बे प्रज्जवलन खत्म होने के बाद ज्यादा दिखाई पड़ते है क्योंकि उन का रंग बदल जाता है।
लीनियर स्क्लेरोडर्मा में प्रभावित भाग के कम बढ़ने से व् मास्पेशिओ व् हड्डीओं के कम बढ़ने से बच्चे की दोनों तरफ की बढ़त में फर्क आ जाता है. यदि जोड़ के ऊपर की चमड़ी प्रभावित तो जोड़ टेड़ा हो जाता है।

2.2 सिस्टेमिक स्केलेरोसिस
2.2.1 सिस्टेमिक स्केलेरोसिस की पुष्टि कैसे की जा जाती है? उसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
स्क्लेरोडर्मा की पुष्टि मरीज के लक्षण व उसका निरिक्षण कर के की जाती है। कोई एक खून का टेस्ट इसकी पुष्टि नहीं कर सकता है। टेस्ट अन्य बीमारिया जो स्क्लेरोडर्मा के जैसी लगती हैं को ख़ारिज करने में, बीमारी की सक्रियता व और अंगो पर प्रभाव को जानने के लिए किये जाते है। इसके शुरूआती लक्षण हैं उंगलियों और पंजों में ठंड के दौरान रंग बदलना (रेनाड प्रक्रिया), उंगलियों के पोरों में घाव होना। उंगलियों, पंजेव नाक की चमडी जल्दी सख्त व चमकदार हो जाती है। सख्तपन धीरे-धीरे बढता है और आखिर मे शरीर के सारे भागो मे फैल जाता है।
बीमारी के दौरान मरीज की चमड़ी में और फर्क आ सकता है जैसे खून की नसे दिखाई देना (तेलेंगेक्टेसिआ ) चमड़ी का पतला हो जाना और चमड़ी के नीचे कैल्शियम जम जाना।शुरू मे उंगलियो में सूजन व जोडों मे दर्द हो सकता है। बीमारी के दौरान अंदरूनी अंग प्रभावित हो सकते हैं और बीमारी का अंतिम परिणाम अंदरूनी अंगो के प्रभाव व उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। यह आवश्यक है कि हर अंग पर प्रभाव के लिये जांच की जाये परन्तु इस बीमारी के लिये कोई विशेष जांच नही है । अन्दरूनी अंग भी प्रभावित हो सकते है और बीमारी की गंभीरता अन्दरूनी अंग के प्रकार व उसकी गंभीरता पर निर्भर करती है। यह महत्वपूर्ण है की सब अन्दरूनी अंगो( फेफड़े ,आंत , दिल ) की जाँच कर उन पर प्रभाव व् उनकी कार्य क्षमता जान ली जाये।
खाने की नली पर प्रभाव बीमारी की शुरूआत में अधिकतर बच्चों में पाया जाता है। इससे पेट में जलन (जो अम्ल के पेट से खाने की नली में जाने के कारण होता है) और खाना निगलने में तकलीफ हो सकती है।। देर बाद पूरी आंत पर इसका प्रभाव पडता है जिससे पेट फूल जाता है और पाचन क्रिया पर प्रभाव पडता है। प्रायः फेफडों पर प्रभाव भी पाया जाता है। ह्दय और गुर्दो पर भी इस बीमारी का असर हो सकता है। स्क्लेरोडर्मा के लिए कोई विषेश जाँच नहीं है। जो डाक्टर सिस्टमिक स्क्लेरोडर्मा के मरीजों की देख रेख करते है वह समय समय पर अंदरूनी अंग की जाँच करते रहते है यह देखने के लिए कि अंदरूनी अंग पर प्रभाव है या नहीं और वो बढ़ या घट रहा है।

2.2.2 सिस्टेमिक स्केलेरोसिस का बच्चो मे क्या इलाज है?
बाल संधिवात विशेषज्ञ जो स्केलेरोडर्मा के इलाज में निपुण हो वही इसके इलाज का सही निर्णय ले सकते हैं। ह्दय व गुर्दा रोग विशेषज्ञ से भी सलाह की जरुरत पडती है। स्टीरोइड के साथ-साथ मेथोट्रेक्सेट और मिकोफेनोलेट का प्रयोग किया जाता है। जब फेफडों या गुर्दे पर प्रभाव हो तो इक्लोफोसफामाइड का प्रयोग किया जाता है। रेनोड प्रक्रिया के लिये खून की दौडान को बनाये रखने के लिये गर्म रहना चाहिये जिससे चमडी में घाव नही हो। कभी-कभी खून का दौडान बढाने वाली दवा देनी पडती है। कोई भी दवा इस रोग में प्रभावशाली नही दिखाई गई है। हर मरीज में विभिन्न दवाएं जो अन्य सिस्टमिक स्क्लेरोसिस मरीजों में कारगर पायी गयी है का प्रयोग कर उस मरीज में सबसे कारगर इलाज़ पाया जा सकता है। अभी इस दिशा में जांच की जा रही है और आशा है कि अगले कुछ वर्षों में बेहतर दवा ढूंढ ली जायेगी। बहुत गंभीर मरीजों में बोन मेरो प्रत्यारोपण किया जा सकता है।
बीमारी के दौरान जोडों और फेफडों की कार्यक्षमता को बनाये रखने के लिये व्यायाम की जरूरत है।

2.2.3 लम्बे दौरान में सिस्टमिक स्क्लेरोडर्मा को क्या होता है?
सिस्टमिक स्क्लेरोसिस एक जान लेवा बीमारी है। बीमारी का अंतिम परिणाम अंदरूनी अंगो ( दिल,गुर्दे व फेफड़े )के प्रभाव व उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ मरीजों में बीमारी लम्बे दौरान के लिए स्थिर हो जाती है।


3.रोजमर्रा की जिन्दगी

3.1 यह बीमारी कब तक चलेगी
सिमित स्क्लेरोडर्मा कुछ साल तक बढ़ता है। बीमारी की शुरआत के कुछ सालो बाद चमड़ी का सख्तपन रुक जाता है। कभी-कभी इसमें 5-6 साल भी लग सकते हैं और कई चकत्ते रंग में फर्क के कारण प्रज्वलन समाप्त होने पर और उभर जाते हैं। प्रभावित और सामान्य अंगों में बढत में फर्क होने से बीमारी ज्यादा प्रतीत हो सकती है। सिस्टेमिक स्केलेरोसिस लम्बे समय तक चलने वाली बीमारी है जो पूरी जिन्दगी भर रह सकती है। परन्तु जल्दी व सही इलाज़ से बीमारी की अवधी को कम किया जा सकता है।

3.2 क्या यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है
सीमित स्केलेरोडर्मा बच्चों में ठीक हो जाता है। कुछ समय बाद सख्त चमडी भी मुलायम हो सकती है। सिस्टेमिक स्केलेरोसिस में पूरी तरह ठीक होना बहुत मुश्किल है पर काफी आराम हो सकता है। पर काफी फ़ायदा या बीमारी मे स्थिरता लायी जा सकती है जिससे जिंदगी अच्छी हो सकती है।

3.3और प्रकार के इलाजों के बारे में क्या?
बहु प्रकार के इलाज़ प्रचलित हैं व इससे मरीज व उसके परिवार भ्रमित हो जाते है। इन इलाज़ को प्रयोग करने से पहले उनके फयदे व हानि के बारे में सोच लें क्योंकि उनके कारगर होने का कोई सबूत नहीं है व वह महंगे होते है। यदि आप उन्हें प्रयोग करना चाहते है तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। कुछ इलाज़ आपकी दवा के साथ बुरा असर कर सकते है। अधिकतर डॉक्टर उसके बारे में मना नहीं करेंगे जब तक आप बाकी इलाज़ करते रहेंगे। यह बहुत जरुरी है की आप अपनी दवा बंद न करें। यदि दवा आपकी बीमारी को नियंत्रित ऱखने में मदद कर रही हे तो उसको रोकना खतरनाक हो सकता है। दवा के बारे में अपने बच्चे के डॉक्टर से परामर्श करें।

3.4 यह बीमारी बच्चे और उसके परिवार की दिनचर्या को कैसे प्रभावित करती है। समय-समय पर क्या जांचों की आवश्यकता पडती है?
अन्य बीमारियो की तरह ही स्क्लेरोडर्मा बच्चे और उसके परिवार की दिनचर्या को प्रभावित करती है. यदि बीमारी हलकी है और अन्दरूनी अंग प्रभावित नहीं है तो बच्चे और उसके परिवार सामान्य जीवन जी सकते हैं। परन्तु यह याद रखना जरुरी है स्क्लेरोडर्मा से प्रभावित बच्चे थकान महसूस करते है व उन्हें अपनी जगह थोड़ी थोड़ी देर में बदलनी पड़ती है क्योंकि इस बीमारी में खून का बहाव कम रहता है। समय-समय पर जांच से बीमारी की प्रक्रिया के बारे में व दवाओं के फेरबदल के बारे में निर्णय लिया जा सकता है। अंदरूनी अंगों में (फेफडे, आंत, गुर्दे, दिल) प्रभाव को समय-समय पर इन अंगों की जांच कर जल्दी पता लगाया जा सकता है। कुछ दवाओं के कुप्रभाव को जानने के लिये भी समय-समय पर जांच की आवश्यकता पडती है।
यदि कुछ दवायें प्रयोग में लायी जाती हैं तो उनके बुरे असर देखने के लिए समय समय पर जाँच करनी चाहिए।

3.5 स्कूल के बारे में क्या?
यह अनिवार्य हे की बच्चा अपनी पढाई जारी रखे। कुछ कारण बच्चे की स्कूल में उपस्थिति में बाधा डाल सकते हैं इसलिए यह जरुरी है की अध्यापक को बच्चे की कुछ जरुरतो के बारे में अवगत करा दिया जाय। जहां तक सम्भब हो बच्चे को व्यायाम में भाग लेना चाहिए ; यदि यह है तो जो नीचे खेलकूद के बारे में लिखा हे उन सबका ध्यान रखना चाहिए। जब बीमारी ठीक होती है जैसा की उपलब्ध दवाओ से संभव है बच्चे को वह सब जो ठीक बच्चे करते हैं करने में कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। बच्चो के लिया स्कूल वैसे ही है जैसे बड़ो के लिए काम : वह जगह जहाँ वह एक दूसरे से मिलना जुलना व स्वंतत्र होना सीखता है। माँ बाप व अध्यापक को हर संभव प्रयास करना चाहिए की बच्चा स्कूल में सामान्य रूप से भाग ले सके , न की वह पढ़ लिख सके पर वह अपने दोस्तों व बड़ो में मिल जुल कर रह सके।

3.6 खेलकूद के बारे में क्या?
खेलकूद बच्चों की जिंदगी का अनिवार्य अंग है। इलाज़ का एक मकसद बच्चो को सामान्य जिंदगी प्रदान करना है जिससे वो अपने आप को और बच्चो से अलग न समझे। खेलकूद बच्चों की जिंदगी का अनिवार्य अंग है। इलाज़ का एक मकसद बच्चो को सामान्य जिंदगी प्रदान करना है जिससे वो अपने आप को और बच्चों से अलग न समझे। इसलिए यह सिफारिश है की मरीज को खेलकूद में भाग लेने देना चाहिए यह मान कर की जब उसे दर्द या तकलीफ होगी तो वो अपने आप रुक जायेगा। यह रवैया उस सोच का भाग है जो बच्चे को मानसिक रूप से प्रेरित करके उसे स्वतंत्र व्यक्ति बनती है और उसे अपनी बीमारी के दायरे में रह कर काम करने देती है.

3.7 खानपान के बारे में क्या?
खानपान का बीमारी पर कोई असर करने का कोई प्रमाण नहीं है। बच्चे को अपनी उम्र के हिसाब से संतुलित खाना खाना चाहिए। बढ़ते बच्चे के लिए संतुलित आहार जिसमे विटामिन, प्रोटीन, व कैल्शियम प्रयाप्त मात्रा में हो की सिफारिश की जाती है। कर्टिकोस्टेरॉइड दवा भूख बढ़ाती है पर ज्यादा खाना नहीं खाना चाहिए।

3.8 क्या मौसम बीमारी के रूप को बदल सकता है?
मौसम का बीमारी के लक्षण पर कोई प्रभाव होने का कोई प्रमाण नहीं है।

3.9 क्या बच्चे को टीके लग सकते हैं।
स्क्लेरोडर्मा के मरीज को कोई टीका लगाने से पहले डॉक्टर से सलह लेनी चाहिए। डॉक्टर यह निर्णय मरीज की दशा देख कर लेता है। औसतन स्क्लेरोडर्मा के मरीज में टीके बीमारी की दशा को बढ़ाते नहीं हैं और वह कोई बुरे असर भी नहीं करते।

3.10 सेक्स लाइफ, गर्भावस्था व बच्चे रोकने के साधनों के बारे में क्या?
सेक्स और गर्भावस्था के ऊपर कोई रोक नहीं है। पर जब मरीज दवा ले रहे हैं उन्हें दवा के बच्चे पर दुष्परिणाम के बारे में सतर्क रहना चाहिए। मरीजों को गर्भावस्था व गर्भ के रोकथाम के तरीको के बारे में डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।


 
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