जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जे.आई.ए. )  


के संस्करण 2016
diagnosis
treatment
causes
Juvenile Idiopathic Arthritis
जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जे.आई.ए. )
जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जे
evidence-based
consensus opinion
2016
PRINTO PReS
1. जे.आई.ए. क्‍या है ?
2. विभिन्‍न प्रकार के जे.आई.ए.
3. जांच एवं उपचार
4. रोज़मर्रा की जिंदगी



1. जे.आई.ए. क्‍या है ?

1.1 यह क्‍या है?
जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जे.आई.ए.) लम्‍बे समय तक चलने वाली जोड़ों के सूजन की बीमारी है ; जोड़ों में सूजन के विशिष्‍ट लक्षण हैं दर्द, सूजन और गतिविधि में रुकावट। "इडियोपैथिक" का मतलब है कि हमें बीमारी के कारण का पता नहीं है और जुवेनाइल का मतलब है कि लक्षणों की शरुआत आमतौर पर सौलह साल की उमर से पहले होती है।

1.2 क्रोनिक का मतलब क्‍या है?
किसी भी बीमारी को क्रोनिक तब कहा जाता है जब उपयुक्‍त इलाज के बावजूद बीमारी तुरन्‍त ठीक नहीं होती पर बीमारी के लक्षणों एवं खून की जांचों में सुधार आ जाता है।
इसका यह भी मतलब है कि बीमारी के पता लगने के वक्‍त यह बताना मुश्किल होता है कि बीमारी कितने समय तक रहेगी

1.3 यह बीमारी कितनी आम है?
जे. आई. ए एक असामान्‍य बीमारी है जो 1000 में से 1-2 बच्‍चों को प्रभावित करती है ।

1.4 इस बीमारी के क्‍या कारण हैं ?
हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्‍यून सिस्‍टम) हमें संक्रमण (बैक्‍टीरिया एवं वाइरस) से बचाती है । यह बाहरी, खतरनाक और जिसे समाप्‍त करना है एवं अंदरुनी के बीच का अंतर बता सकती है ।
यह समझा जाता है कि लम्‍बे समय का गठिया इस प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्‍य प्रतिक्रिया का नतीजा है जिसके कारण यह अपने और बाहरी तत्‍वों की पहचान नहीं कर पाता और अपने शरीर के तत्‍वों को ही नुकसान पहुंचाता है । इस कारण से जे.आई.ए को "ऑटो इम्‍यून" भी कहा जाता है, जिसका मतलब है कि प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही शरीर के खिलाफ काम करती है।
किन्‍तु लम्‍बे समय तक चलने वाली बाकी बीमारियों की तरह जे.आई.ए. के मुख्‍य कारणों का पता नहीं है।

1.5 क्‍या यह अनुवांशिक बीमारी है ?
जे.आई.ए. एक अनुवांशिक बीमारी नहीं है क्‍योंकि यह माता-पिता से सीधे बच्‍चों में नहीं होती, किंतु कुछ अनुवांशिक कारणों से यह बीमारी कुछ लोगों में ज्‍यादा पाई जाती है जिन कारणों का अभी पता नहीं लगा है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह बीमारी अनुवांशिक कारणों एवं पर्यावरण (शायद संक्रमण) का मिला जुला परिणाम है। यद्धपि अनुवांशिक कारणों का इस बीमारी में योगदान है, फिर भी यह बीमारी एक ही परिवार के दो बच्‍चों में बहुत कम पाई जाती है।

1.6 इस बीमारी की पुष्टि कैसे की जाती है ?
इस बीमारी की पुष्टि के लिए जरुरी है कि जोड़ों में सूजन हो एवं अन्‍य बीमारियां जिनके कारण जोड़ों में दर्द हो सकता है, उन बीमारियों का जांच द्वारा पता लगाया जाए।
जे.आई.ए. तब कहते हैं जब बीमारी 16 वर्ष की आयु से पहले शुरु हो, इसके लक्षण 6 हफ्ते से ज्‍यादा हों और ऐसी कोई भी बीमारी न हो जिनके कारण जोड़ों में दर्द हो सकता हो।
6 हफ्ते की समय सीमा इसलिए रखी गई है ताकि संक्रमण से होने वाले अस्‍थायी गठिये से इसकी अलग पहचान की जा सके। जे.आई.ए. के अंतर्गत वह सभी प्रकार के गठिये आते हैं जिनके कारणों का पता नहीं है और जिनकी शुरुआत बचपन में होती है।
जे.आई. ए. के अंतर्गत अनेक प्रकार के गठिये आते हैं (नीचे देखिये)
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1.7 जोड़ों को क्‍या होता है ?
साइनोवियल झिल्‍ली, जो जोड़ों के इर्द-गिर्द होती है, सामान्‍यत: बहुत पतली होती है, वह गठिये में मोटी हो जाती है और जोड़ों के बीच का द्रव्‍य पदार्थ (साइनोवियल फ्लूअड) ज्‍यादा बनने लगता है जिसके कारण जोड़ों में दर्द, सूजन एवं जोड़ों को हिलाने में दिक्‍कत होती है। जोड़ों में सूजन का एक मुख्‍य लक्षण है लम्‍बे समय तक आराम करने के बाद जोड़ों का अकड़ जाना, इस कारण से यह दिक्‍कत सुबह के समय ज्‍यादा होती है (सुबह के समय जोड़ों में जकड़न)
अधिकतर बच्‍चे जोड़ों में दर्द को कम करने के लिये जोड़ों को टेढ़ा रखते हैं जिसे एन्‍टेल्जिक कहा जाता है, मतलब दर्द को कम करना। अगर जाड़ों को लम्‍बे समय तक टेढ़ा रखा जाए(सामान्‍यत: एक महीने से ज्‍यादा) तो मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं जिससे टेढ़ापन स्‍थायी हो जाता है ।
अगर ठीक से इलाज न किया जाए तो जोड़ों में सूजन से, दो मुख्‍य कारणों से, जोड़ खराब हो सकते हैं : साइनोवियल झिल्‍ली बहुत मोटी हो जाती है (साइनोवियल पैनस बन जाता है) और ऐसे पदार्थ बनाती है जिनके कारण हड्डी व जोड़ नष्‍ट होने लगते हैं । एक्‍स-रे पर हड्डियों में सुराख नजर आते हैं (बोन इरोज़न)। जोड़ों को लम्‍बे समय तक टेढ़ा रखने के कारण मांसपेशियां सिकुड़ जाती है, (मांसपेशियों का सिकुड़ जाना), मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है जिसके कारण जोड़ों में स्‍थायी नुकसान हो जाता है ।


2. विभिन्‍न प्रकार के जे.आई.ए.

2.1 क्‍या इस बीमारी के विभिन्‍न प्रकार हैं ?
जे.आई.ए. के अनेक प्रकार हैं । अनेक प्रकारों में फर्क, कितने जोड़ प्रभावित हैं (ओलीगोआर्टिकुलर या पोलीआर्टिकुलर जे.आई.ए.) और अन्‍य लक्षण जैसे बुखार, लाल धब्‍बे और अन्‍य (नीचे देखिये) के आधार पर किया जाता है । इस बीमारी की पुष्टि लक्षणों को शुरुआती 6 महीनों तक देखकर की जाती है।

2.1.1 सिस्‍टेमिक जे.आई.ए.
सिस्‍टेमिक का मतलब है कि जोड़ों में सूजन के अलावा अन्‍य अंगों में भी दिक्‍कत हो सकती है।
सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. में बुखार, लाल धब्‍बे और शरीर के अन्‍य अंगों में सूजन हो सकती है जो जाड़ों में सूजन से पहले या सूजन के दौरान हो सकते हैं। बुखार तेज एवं लम्‍बे समय तक रहता है और लाल धब्‍बे अधिकतर बुखार के समय आते हैं । बीमारी के अन्‍य लक्षण भी हो सकते हैं जैसे मांसपेशियों में दर्द, जिगर, तिल्‍ली या गांठों का बढ़ना और हृदय (पेरिका‍रडाइटिस) और फेफड़ों (प्‍लयूराइटिस का रोग) के आसपास की परत में सोजिश। पांच या उससे ज्‍यादा जोड़ों में सोजिश बीमारी की शुरुआत या बाद में हो सकती है। यह बीमारी किसी भी उम्र के लड़कों व लड़कियों में हो सकती है परन्‍तु यह बीमारी अधिकतर स्‍कूली छात्रों से छोटी उम्र के बच्‍चों में ज्‍यादा पाई जाती है।
करीब आधे बच्‍चों में थोड़े समय के लिए बुखार और जोड़ों में सोजिश होती है और आगे चलकर यह बच्‍चे ठीक हो जाते हैं। बाकी आधे बच्‍चों में बुखार ठीक हो जाता है जबकि जोड़ों में सोजिश समय के साथ बढ़ जाती है जिसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है । कुछ प्रतिशत बच्‍चों में बुखार एवं सोजिश बने रहते हैं । जे.आई.ए. के दस प्रतिशत से कम बच्‍चों में सिस्‍टेमिक जे.आई.ए के लक्षण होते हैं, यह अधिकतर बच्‍चों में पाया जाता है और कभी कभार व्‍यस्‍कों में भी पाया जाता है ।

2.1.2 पौलीआर्टिकुलर जे.आई.ए.
इस प्रकार की बीमारी के लक्षण पहले 6 महीनों में पॉंच या पॉंच से अधिक जोड़ों में दर्द व सूजन एवं बुखार के अभाव से इंगित होते हैं। रेहयूमेटोयड फैक्‍टर के द्वारा पौलीआर्टिकुलर जे.आई.ए के दो प्रकारों में भिन्‍नता की जा सकती है: रेहयूमेटोयड फैक्‍टर निगेटिव एवं रेहयूमेटोयड फैक्‍टर पॉजि़टिव जे.आई.ए.।
रेहयूमेटोयड फैक्‍टर पॉजि़टिव पौलीआर्टिकुलर जे.आई.ए : यह प्रकार बच्‍चों में बहुत कम पाई जाती है (पांच प्रतिशत से कम जे.आई.ए. के बच्‍चों में)। य‍ह व्‍यस्‍कों में रेहयूमेटोयड फैक्‍टर पॉजिटिव गठिया की बीमारी जैसी होती है (व्‍यस्‍कों में होने वाली सबसे ज्‍यादा लम्‍बे समय की गठिये की बीमारी)। यह प्रकार दोनों तरफ के जोड़ों, प्राय: हाथ व पैर के छोटे जोड़ों से शुरु होकर अन्‍य जोड़ों में हो जाती है। यह लड़कों के मुकाबले लड़कियों में ज्‍यादा पाई जाती है और प्राय: दस साल की उम्र के बाद शुरु होती है। यह गंभीर प्रकार का गठिया होता है ।
रेहयूमेटोयड फैक्‍टर निगेटिव पौलीआर्टिकुलर जे.आई.ए : यह जे.आई.ए. के करीब 15 से 20 प्रतिशत मरीज़ों में होती है। यह किसी भी उम्र के बच्‍चों में हो सकती है। यह गठिया छोटे एवं बड़े किसी भी जोड़ में हो सकता है ।
उपरोक्‍त दोनों प्रकार के गठिये का ईलाज बीमारी के पता लगते ही करना होता है । यह माना जाता है कि उपयुक्‍त एवं जल्‍दी इलाज करने से बेहतर परिणाम होते हैं , परन्‍तु शुरुआत में ईलाज के परिणाम का पता लगाना मुश्किल होता है। ईलाज का परिणाम हर बच्‍चे में भिन्‍न हो सकता है

2.1.3 ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए (परसिस्‍टेंट या एक्‍सटेंडिड )
ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए गठिये के 50 प्रतिशत बच्‍चों में पाया जाता है। इस प्रकार के लक्षणबीमारी के पहले 6 महीने में 5 से कम जोड़ों को प्रभावित करते हैं। यह प्राय: एक तरफ के बड़े जोड़ों को (घुटने एवं टखने) प्रभावित करती है । कभी-कभी यसह केवल एक जोड़ को प्रभावित करती है (मोनोआर्टिकुलर प्रकार)। कुछ मरीजों में बीमारी के पहले 6 महीनों के बाद 5 या उससे अधिक जोड़ प्रभावित हो सकते हैं जिसे एक्‍सटेंडिड ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए. कहा जाता है । अगर पूरी बीमारी में 5 से कम जोड़ प्रभावित रहते हैं तो उसे परसिस्‍टेंट ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए. कहा जाता है।
ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए. प्राय: 6 वर्ष से कम उम्र में शुरु होता है और अधिकतर लड़कियों में पाया जाता है। यदि गठिया कुछ जोड़ों तक सीमित रहे तो उपयुक्‍त उपचार से जोड़ ठीक हो सकते हैं ; जिन मरीजों में अधिक जोड़ प्रभावित होते हैं, उनमें परिणाम विभिन्‍न हो सकते हैं।
कुछ प्रतिशत बच्‍चों में आंखों में दिक्‍कत हो सकती है, जैसे आंखों के आगे वाले भाग में सोजिश (एन्‍टीरियर यूवीआइटिस), यूवीया एक परत है जिसमें रक्‍त धमनियां होती हैं। क्‍योंकि यूवीया का आगे वाला भाग सिलियेरी बॉडी व आईरिस से बनता है, इसीलिये इस प्रक्रिया को क्रोनिक एन्‍टीरियर यूवीआइटिस या क्रोनिक ईरीडोसाइकलाइटिस भी कहते हैं । यदि इसकी सही समय पर पुष्टि व इलाज न किया जाए तो यह बीमारी बढ़ जाती है और आंख स्‍थायी रूप से क्षतिग्रस्‍त हो सकती है। इसलिये इस प्रक्रिया को जल्‍दी पकड़ना अति आवश्‍यक है। एंटीरियर यूवीआइटिस माता-पिता व चिकित्‍सक की पकड़ में नहीं आता क्‍योंकि इसमें आंख लाल नहीं होती व बच्‍चा आंख में धुंधलापन महसूस नहीं करता। जिन बच्‍चों में जे.आई.ए. छोटी उम्र में होता है व जिनमें ए.एन.ए. पॉजिटिव होता है, उन बच्‍चों में यूवीआइटिस होने का खतरा ज्‍यादा होता है।
जिन बच्‍चों में इसके होने की संभावना ज्‍यादा हो उनकी समय-समय पर आंखों के विशेषज्ञ से हर तीन महीने पर एक यंत्र जिसे स्लिट लैम्‍प कहते हैं, के जरिए जांच करानी चाहिये।

2.1.4 सोरायटिक आर्थराइटस
इस प्रकार का गठिया जोड़ों में सूजन के साथ सोरायसिस के लक्षणों से इंगित होता है। सोरायसिस एक चमड़ी की बीमारी है जिसमें प्राय: कोहनी व घुटनों पर चकत्‍ते पड़ जाते हैं। कभी-कभी केवल नाखून सोरायसिस से प्रभावित होते हैं या परिवार के किसी सदस्‍य को सोरायसिस हो सकता है। त्‍वचा की बीमारी जोड़ों के दर्द से पहले या बाद में हो सकती है। इस प्रकार में हाथ या पैर की उंगली में सोजिश (डैक्‍टीलाइटिस) एवं नाखूनों में बदलाव (पिटिंग) होते हैं। परिवार के किसी सदस्‍य(माता-पिता या भाई-बहन) को सोरायसिस हो सकता है। इस प्रकार में क्रोनिक एंटीरियर यूवीआइटिस हो सकता है, इसलिए निरन्‍तर आंखों की जांच कराते रहना चाहिए।
इलाज का परिणाम चमड़ी व जोड़ों की बीमारी के लिए विभिन्‍न हो सकता है। अगर बच्‍चे को पांच से कम जोड़ों में गठिया है तो उसका इलाज ओलीगोआर्टिकुलर जे.आई.ए. की तरह किया जाता है। अगर बच्‍चे को पांच से अधिक जोड़ों में गठिया है, तो उसका इलाज पोलीआर्टिकुलर जे.आई.ए. की तरह किया जाता है।

2.1.5 गठिया जो एंथीसाइटिस के साथ हो।
इस प्रकार के मुख्‍य लक्षण टांगों के बड़े जोड़ों में गठिया व एंथीसाइटिस होते हैं। एंथीसाइटिस का अर्थ है एंथीसिस में प्रदहन, जो मांसपेशियों का हड्डी में जुड़ने के स्‍थान पर होता है (एड़ी एंथीसिस का एक उदाहरण है)। इस जगह पर सोजिश के कारण बहुत दर्द होता है। यह दर्द ज्‍यादातर पैर में एड़ी के नीचे व पीछे होता है। कभी-कभी इन मरीजों में आंख के आगे के भाग पर प्रभाव पड़ सकता है किन्‍तु यह जे.आई.ए. के बाकी प्रकार से भिन्‍न होता है और आंखों में लाली, पानी आना व ज्‍यादा रोशनी में आंखें चौंधिया जाना जैसे लक्षण होते हैं। अधिकतर मरीजों मे खून की जांच में एच.एल.ए.बी 27 होता है। यह बीमारी अधिकतर लड़कों में 6 साल की आयु के बाद प्रारम्‍भ होती है। इसकी प्रक्रिया किसी भी प्रकार की हो सकती है । कुछ बच्‍चों में यह बीमारी पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है और कुछ में यह बढ़कर रीढ़ की हड्डी और कूल्‍हे के जोड़ों को प्रभावित करती है जैसे सेक्रोइलिएक जोड़ जिससे आगे झुकने में दिक्‍कत होती है । प्रात:काल निचली कमर में दर्द और अकड़न रीढ़ की हड्डी में सोजिश दर्शाते हैं। सच तो यह है कि यह लक्षण व्‍यस्‍कों में अधिक पाए जाते हैं, जिसे एंकाईलोजि़ंग स्‍पौंडीलाइटिस कहा जाता है।

2.2 क्रोनिक ईरीडोसाइकलाइटिस के क्‍या कारण हैं ? इसका गठिये से क्‍या संबंध है ?
आंख में प्रदहन ईरीडोसाइकलाइटिस प्रतिरक्षा प्रणाली का आंख के विरुद्ध कार्य करने के कारण होता है। इसके सूक्ष्‍म कारणों का अभी पता नहीं है। यह परेशानी अधिकतर उन मरीजों में देखी जाती है जिनमें गठिया छोटी उम्र में होता है और जिनमें एंटीन्‍यूक्लियर एन्‍टीबॉडी (ए.एन.ए.) पाया जाता है।
आंख और जोड़ की बीमारी का आपसी तालमेल का कारण पता नहीं है । यह जानना जरुरी है कि जोड़ों व आंख की बीमारी की प्रक्रिया एक दूसरे से अलग-अलग हो सकती है तथा समय-समय पर आंख की स्लिट लैम्‍प द्वारा जांच, जोड़ों का दर्द ठीक होने के बाद भी करते रहना चाहिए, क्‍योंकि लक्षणों के अभाव में तथा जोड़ों की सूजन के अभाव में भी आंखों की सोजिश हो सकती है।
ईरीडोसाइकलाइटिस का प्राय: जोड़ों की बीमारी के बाद या साथ में पता चलता है । कभी कभार यह जोड़ों के दर्द से पहले भी आ सकती है। यह मरीज़ बहुत दर्भाग्‍यशाली होते हैं क्‍योंकि इसमें कोई लक्षण नहीं होते और आंख की बीमारी का देर से पता चलने पर देखने में परेशानी हो सकती है।

2.3 क्‍या यह बीमारी व्‍यस्‍कों में होने वाली बीमारी से भिन्‍न है ?
ज्‍यादातर हां पोलीआर्टिकुलर रेहयूमेटोयड फैक्‍टर पॉजिटिव प्रकार जो व्‍यस्‍कों में 70 प्रतिशत गठिये के लिए जिम्‍मेवार है, वह जे.आई.ए. में सिर्फ 50 प्रतिशत बच्‍चों में होता है । ओलिगोआर्टिकुलर प्रकार जो 50 प्रतिशत जे.आई.ए. के बच्‍चों में होता है, व्‍यस्‍कों में नहीं पाया जाता। सिस्‍टेमिक गठिया भी बच्‍चों में कभी कभार होता है ।


3. जांच एवं उपचार

3.1 किस प्रकार की जांचों की जरुरत होती है ?
बीमारी की पुष्टि के लिये लक्षणों के साथ-साथ कुछ जांचें, जे.आई.ए. का प्रकार जानने व उन मरीजों का पता लगाने में मदद करती हैं जिनमें क्रोनिक ईरीडोसाइकलाइटिस हो सकता है।
रेहयूमेटोयड फैक्‍टर एक प्रकार की ऑटोएंटीबॉडी है, जो अगर अधिक मात्रा में हो तो जे.आई.ए. के प्रकार को दर्शाती है।
एन्‍टी न्‍यूक्लियर एंटीबॉडी (ए.एन.ए.) प्राय: छोटे बच्‍चों में ओलिगोआर्टिकुलर प्रकार में पाई जाती है । यह उन बच्‍चों का पता लगाती है जिन्‍हें क्रोनिक ईरीडोसाइकलाइटिस होने की संभावना होती है और जिन्‍हें हर 3 माह पर आंखों की जांच स्लिट लैम्‍प द्वारा करानी चाहिये।
एच.एल.ए.-बी27 एक घनात्‍मक है जो एन्‍थीसाइटिस के साथ जुड़े गठिये के 80 प्रतिशत मरीज़ों में होता है । सामान्‍य जनता में यह 5-8 प्रतिशत लोगों में पाया जाता है।
अन्‍य जांचें जैसे ई.एस.आर. और सी.आर.पी. शरीर में प्रदहन को नापते हैं; हालांकि बीमारी की पुष्टि और इलाज जांचों से ज्‍यादा बीमारी के लक्षणों पर निर्भर करते हैं ।
दवा के प्रयोग के अनुसार उनके दुष्‍परिणाम जानने के लिए समय-समय पर जांच (खून की कोशिकाओं, जिगर व पेशाब की) करनी पड़ती है । जोड़ों में सोजिश का पता ज्‍यादातर मरीज़ की जांच से व कभी कभार अल्‍ट्रासाउण्‍ड से किया जाता है । हड्डियों की बीमारी का पता लगाने के लिए समय-समय पर एक्‍स-रे एवं एम.आर.आई. मददगार होते हैं।

3.2 हम इसका इलाज कैसे कर सकते हैं ?
जे.आई.ए. को जड़ से खत्‍म करने की कोई दवा नहीं है। बीमारी के इलाज का मकसद दर्द, थकावट, अकड़न को कम करना, जोड़ और हड्डी की खराबी को रोकना एवं गठिये के सभी प्रकारों में विकास और संरक्षण गतिशीलता में सुधार है। पिछले दस वर्षों में बॉयोलोजिक दवाओं की शुरुआत से जे.आई.ए. के इलाज में जबरदस्‍त प्रगति हुई है। हालांकि कुछ बच्‍चे ‘उपचार प्रतिरोधी’ हो सकते हैं जिसका अर्थ है कि इलाज के बावजूद बीमारी सक्रिय है और जोड़ों में सूजन है। हालांकि हर बच्‍चे का इलाज व्‍यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिए, उपचार तय करने के लिए कुछ दिशा निर्देश हैं । उपचार के निर्णय में माता-पिता की भागीदारी महत्‍वपूर्ण है।
इलाज अधिकतर उन दवाओं पर निर्भर करता है जो शारीरिक लक्षणों एवं जोड़ों में सूजन को कम करती हैं एवं उन पुनर्वास प्रक्रियाओं पर भी निर्भर करता है जो जोड़ों के संरक्षण व विकृति को रो‍कने पर आधारित है ।
इलाज काफी जटिल है और इसमें अलग-अलग विशेषज्ञों (बाल संधिवात विशेषज्ञ, हड्डी के विशेषज्ञ, आंख के विशेषज्ञ, कसरत के चि‍कित्‍सक) का योगदान आवश्‍यक है।
अगला भाग जे.आई.ए. की वर्तमान उपचार रणनीतियों का वर्णन है। विशिष्‍ट दवाओं पर अधिक जानकारी ड्रग थेरेपी अनुभाग में पाई जा सकती है। याद रहे कि प्रत्‍येक देश की मंजूरी दी हुई दवाओं की एक सूची है, इसलिए सभी दवाएं सभी देशों में उपलब्‍ध नहीं हैं।

नॉन-स्‍टीरॉयडल एंटीइन्‍फलामेटरी दवायें (एन.एस.ए.आई.डी.)
नॉन-स्‍टीरॉयडल एंटीइन्‍फलामेटरी दवायें (एन.एस.ए.आई.डी.) पारंपरिक रूप से जे.आई.ए. और अन्‍य बाल गठिया रोगों के सभी प्रकारों के लिए मुख्‍य उपचार रही हैं । यह प्रदहन और बुखार को कम करने में कामया‍ब होती है। यह बीमारी की प्रक्रिया को समाप्‍त करने में कारगर नहीं हैं, लेकिन सूजन की वजह से होने वाले लक्षणों को नियंत्रित करती हैं। नेप्रोक्सिन व इबोप्रोफेन सबसे ज्‍यादा प्रयोग में लाई जाने वाली दवायें है । एस्प्रिन सस्‍ती व कारगर जरुर है किन्‍तु दुष्‍परिणामों के कारण आजकल कम प्रयोग में लाई जाती है (ज्‍यादा मात्रा में लेने पर पूरे शरीर पर असर, सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. में जिगर पर असर)। यह दवायें बच्‍चे आराम से ले सकते हैं और व्‍यस्‍कों की तरह उनमें पेट में तकलीफ भी आम नहीं है। कभी-कभार यह हो सकता है कि एक एन.एस.ए.आई.डी. दवा काम न करे और दूसरी अच्‍छा काम करे । इन दवाओं का जोड़ों की सूजन पर पूरा असर कई हफ्तों बाद होता है।

जोड़ों में इंजेक्‍शन
जोड़ में इंजेक्‍शन तभी प्रयोग में लाये जाते हैं जब एक या दो जोड़ों में बुत ज्‍यादा दर्द हो जिसके कारण जोड़ की गतिविधि कम हो जाए। जोड़ों में देर तक काम करने वाला स्‍टीरॉयड प्रयोग में लाया जाता है। ट्रायमसीनोलोन हैक्‍सासीटोनाईड लंबे समय तक प्रभाव (अक्‍सर कई महीने) के लिये पसंद किया जाता है: सिस्‍टेमिक संचलन में अवशोषण कम होता है। यह ओलीगोआर्टिकुलर गठिये में मुख्‍य उपचार है और गठिये के बाकी प्रकारों में अन्‍य उपचार के साथ इस्‍तेमाल किया जाता है। चिकित्‍सा का यह रूप एक ही जोड़ में कई बार दोहराया जा सकता है। जोड़ में इंजेक्‍शन स्‍थानीय संज्ञाहरण या सामान्‍य संज्ञाहरण (आमतौर पर छोटी उम्र में) में दिया जा सकता है- यह निर्भर करता है बच्‍चे की उम्र पर, जोड़ का प्रकार एवं इंजेक्‍शन दिए जाने वाले जोड़ों की संख्‍या पर। आमतौर पर एक ही जोड़ में एक वर्ष में 3-4 से अधिक इंजेक्‍शन देने की सिफारिश नहीं दी जाती।
आमतौर पर जोड़ में इंजेक्‍शन अन्‍य उपचार के साथ दिए जाते हैं ताकि दर्द और अकड़न में तेजी से सुधार हो या जब तक अन्‍य दवाएं काम करना शुरु करें।

दूसरे स्‍तर की दवाएं
दूसरे स्‍तर की दवाएं उन बच्‍चों के लिए हैं जिनमें एन.एस.ए.आई.डी. व जोड़ों में इंजेक्‍शन के बावजूद गठिया लगातार बढ़ता रहता है। आमतौर पर दूसरे स्‍तर की दवाएं एन.एस.ए.आई.डी. चिकित्‍सा, जो सामान्‍य रूप से जारी है, में जोड़ी जाती है। दूसरे स्‍तर की दवाओं का पूरा असर कई हफ्तों या महीनों में होता है।

मेथोट्रेक्‍सेट
इसमें कोई शक नहीं है कि मेथोट्रेक्‍सेट जे.आई.ए. के बच्‍चों के लिए दुनिया भर में दूसरे स्‍तर की दवाओं में पहली पसंद है। कई अध्ययनों से इसकी क्षमता एवं कई साल तक दवाई देने के बाद भी इसके सुरक्षित होने का सबूत मिला है। चिकित्‍सा साहित्‍य ने अब अधिकतम प्रभावी खुराक (चमड़ी के नीचे इन्‍जेक्‍शन द्वारा या मौखिक मार्ग से 15 मिलीग्राम प्रति वर्गमीटर) को स्‍थापित किया है। इसलिए साप्‍ताहिक मेथोट्रेक्‍सेट पोलीआर्टिकुलर जे.आई.ए. के बच्‍चों में पहली पसंद की दवा है। यह अधिकतर मरीजों में प्रभावशाली होती है । यह प्रदहन को कम करती है एवं कुछ मरीज़ों में अज्ञात तंत्र के माध्‍यम से रोग प्रगति को कम करती है या बीमारी की प्रतिक्रिया को समाप्‍त करती है। आमतौर पर यह अच्‍छी तरह से सहन की जाती है, पेट में जलन व जिगर के एंजाइम्‍स बढ़ना इसके मुख्‍य दुष्‍प्रभाव हैं। उपचार के दौरान संभावित दुष्‍प्रभावों के लिये समय-समय पर खून की जांच करवानी पड़ती है।
मेथोट्रेक्‍सेट को अब दूनिया भर के कई दशों में जे.आई.ए. में उपचार के लिए मंजूरी दे दी गई है। यह भी सिफारिश की गई है कि मेथोट्रेक्‍सेट के इलाज को फोलिक या फोलिनिक एसिड, एक विटामिन जो दुष्‍प्रभाव, विशेष रूप से जिगर के खतरों को कम करता है, के साथ मिला कर देना चाहिऐ।

लेफल्‍यूनोमाइड
लेफल्‍यूनोमाइड उन बच्‍चों, जो मेथोट्रेक्‍सेट को बरदाश्‍त नहीं करते, के लिए एक विकल्‍प है। लेफल्‍यूनोमाइड गोलियों के रूप में दिया जाता है और इस उपचार का जे.आई.ए. में अध्‍ययन किया गया है और इसकी क्षमता सिद्ध की गई है। हालांकि यह उपचार मेथोट्रेक्‍सेट से ज्‍यादा मंहगा है।

सेलेज़ोपाईरिन एवं साइक्‍लोस्‍पोरिन
अन्‍य गैर बॉयोलोजिक दवाईयां, जैसे कि सेलेज़ोपाईरिन को भी जे.आई.ए. में प्रभावी दिखाया गया है, लेकिन आमतौर पर मेथोट्रेक्‍सेट के मुकाबले कम अच्‍छी तरह से बर्दाश्‍त की जाती हैं। सेलेज़ोपाइरिन के साथ अनुभव मेथोट्रेक्‍सेट की तुलना में बहुत सीमित है। आज तक साइक्‍लोस्‍पोरिन जैसी अन्‍य संभावित उपयोगी दवाओं का जे.आई.ए. में असर देखने के लिए कोई उचित अध्‍ययन नहीं किया गया है। सेलेज़ोपाइरिन एवं साइक्‍लोस्‍पोरिन वर्तमान में कम इस्‍तेमाल में लाई जाती है, कम से कम उन देशों में जहां बॉयोलोजिक दवाओं की उपलब्‍धता अधिक व्‍यापक है। साइक्‍लोस्‍पोरिन, कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स के साथ सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. के बच्‍चों में मेकरोफेज एक्‍टीवेशन सिंड्रोम के उपचार के लिए एक मूल्‍यवान दवा है। मेकरोफेज एक्‍टीवेशन सिंड्रोम सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. की एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है जो व्‍यापक प्रदहन प्रक्रिया के सक्रिय होने के कारण होती है।

कोर्टिकोस्‍टीरायॅड्स
कोर्टिकोस्‍टीरायॅड्स प्रदहन को रोकने के लिए सबसे प्रभावशाली दवाएं हैं किन्‍तु इन्‍हें कम प्रयोग में लाया जाता है क्‍योंकि लंबे समय तक इस्‍तेमाल करने पर इनके अनेक कुप्रभाव हो सकते हैं, जैसे हड्डी पतली होना और लम्‍बाई न बढ़ना। फिर भी कोर्टिकोस्‍टीरायॅड्स उन सिस्‍टेमिक लक्षणों के उपचार के लिए मूल्‍यवान हैं जिनपर अन्‍य दवाओं का असर नहीं होता। यह जानलेवा प्रक्रिया को नियंत्रण में लाने व दूसरे स्‍तर की दवाइयों के बीमारी को नियंत्रित करने तक लक्षण रोकने में कामयाब होती है।
ईरीडोसाइकलाइटिस के लिये स्‍टीरॉयड की बूंदें आंख में डाली जाती हैं। गंभीर बीमारी होने पर आंख के पास या रक्‍तकोशिका में स्‍टीरॉयड का इंजेक्‍शन देना आवश्‍यक हो सकता है।

बॉयोलोजिक दवाएं
बॉयोलोजिक दवाइयों के साथ पिछले कुछ वर्षों में नये दृष्टिकोण पेश किये गए हैं । चिकित्‍सक यह शब्‍दावली उन दवाइयों के लिए इस्‍तेमाल करते हैं जो बायोलोजिक इंजीनियरिंग के द्वारा बनाई जाती हैं और मेथोट्रेक्‍सेट या लेफल्‍यूनोमाइड के विपरीत मुख्‍य रूप से विशिष्‍ट अणुओं के खिलाफ काम करती हैं (ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्‍टर या टी.एन.एफ., इंटरल्‍यूकिन1, इंटरल्‍यूकिन 6 या टी सेल स्‍टीमुलेटरी अणु)। बॉयोलोजिक दवाएं जे.आई.ए. में होने वाली प्रदहन प्रक्रिया को रोकने के लिए महत्‍वपूर्ण साधन के रूप में पहचानी गई हैं। अब कई बॉयोलोजिक दवाएं उपलब्‍ध हैं और लगभग सभी विशेष रूप से जे.आई.ए. में उपयोग के लिए मंजूर की गई हैं (नीचे बाल चिकित्‍सा विधान देखें)

एंटी टी.एन.एफ. दवायें
एंटी टी.एन.एफ. दवायें टी.एन.एफ. की कार्यक्षमता को रोकती हैं, जो प्रदहन प्रक्रिया का एक अनिवार्य मध्‍यस्‍थ है। उनका अकेले या मेथोट्रेक्‍सेट के साथ प्रयोग किया जाता है और यह अधिकतर मरीजों में कारगर होती है। इनका असर बहुत जल्‍दी शुरु हो जाता है और उनके प्रभाव भी बहुत अच्‍छे हैं, कम से कम उपचार के कुछ वर्षों के लिए (नीचे सुरक्षा अनुभाग देखें) ; हालांकि उन्‍हें लम्‍बे समय तक प्रयोग करने के बाद ही उनके लम्‍बे समय में होने वाले प्रभाव के बारे में पता चलेगा। टी.एन.एफ ब्‍लॉकर्स सहित, जे.आई.ए. के लिए बॉयोलॉजिक दवाएं, सबसे व्‍यापक रूप से इस्‍तेमाल की जाती हैं और वे विधि और प्रशासन में काफी हद तक भिन्‍न होती हैं। उदाहरण के लिए इटानेर्सेप्‍ट हफ्ते में एक या दो बार चमड़ी के नीचे दिया जाता है, अडालीमुमैब हर दो हफ्ते में चमड़ी के नीचे और इंफ्लीक्‍सीमैब हर महीने। बच्‍चों की दवाओं में जांच चल रही है (जैसे कि गोलीमुमैब और सर्टोलीज़ुमैब पीगोल) और अन्‍य अणुओं का व्‍यस्‍कों में अध्‍ययन चल रहा है जो भविष्‍य में बच्‍चों के लिए उपलब्‍ध हो सकते हैं।
आमतौर पर, एन्‍टी टी.एन.एफ. उपचार, परसिस्‍टेंट ओलीगोआर्थराइटिस जिसका इलाज बॉयोलोजिक दवाइयों द्वारा नहीं किया जाता, को छोड़कर जे.आई.ए. के कभी प्रकारों के लिए कार्यरत है। सिस्‍टेमिक जे.आई.ए., जिसमें दूसरी बॉयोलोजिक दवाएं सामान्‍य रूप से इस्‍तेमाल की जाती हैं जैसे एन्‍टी आई.एल.1(एनाकिनरा एवं कनाकीनुमैब) या एन्‍टी आई.एल.6 (टॉसीलीजुमैब), में इसके इस्‍तेमाल के सीमित संकेत हैं। एन्‍टी टी.एन.एफ. दवाएं या तो अकेले या मेथोट्रेक्‍सेट के साथ संयोजन में उपयोग की जाती हैं । अन्‍य सभी दूसरे स्‍तर की दवाओं की तरह इन्‍हें भी सख्त चिकित्‍सा नियंत्रण के तहत दिया जाना चाहिए।

एन्‍टी सी.टी.एल.4आई.जी. (अबैटासैप्‍ट)
अबैटासैप्‍ट अलग तंत्र के साथ एक दवा है जो टी लिम्‍फोसाइट्स के खिलाफ निर्देशित कार्रवाई करती है। वर्तमान में पोलीआर्थराइटिस के जिन बच्‍चों में मेथोट्रेक्‍सेट या अन्‍य बायोलोजिक दवाओं का असर नहीं आता उनके ईलाज के लिए यह इस्‍तेमाल की जा सकती है।

एन्‍टी इंटरल्‍यूकिन -1 (एनाकिनरा एवं कनाकीनुमैब) एवं एन्‍टी इंटरल्‍यूकिन-6 (टॉसीलीजुमैब)
यह दवाएं सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. के इलाज के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती हैं। आमतौर पर सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. का उपचार कोर्टिकोस्‍टीरायॅडस के साथ शुरु होता है। हालांकि कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स प्रभावित होते हैं, यह दुष्‍प्रभावों के साथ जुड़े होते हैं, विशेष रूप से विकास पर, इसलिए जब वे एक कम समय अवधि (आमतौर पर कुछ महीने) के भीतर रोग गतिविधि को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते, चिकित्‍सक एन्‍टी आई.एल.1 (एनाकिनरा या कनाकीनुमैब) या एन्‍टी आई.एल.-6 (टॉसीलीज़ुमैब) दवाओं को सिस्‍टेमिक लक्षण (बुखार), एवं गठिये के इलाज के लिए जोड़ देते हैं। सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. के बच्‍चों में कभी-कभी सिस्‍टेमिक लक्षण अनायास गायब हो जाते हैं लेकिन गठिया बना रहता है। इन मामलों में, मेथोट्रेक्‍सेट अकेले या एन्‍टी टी.एन.एफ. या अबैटासैप्‍ट के साथ संयोजन में इस्‍तेमाल किया जा सकता है । टॉसीलिज़ुमैब सिस्‍टेमिक एवं पोलीआर्टिकुलर जे.आई.ए. में इस्‍तेमाल किया जा सकता है । यह पहले सिस्‍टेमिक और बाद में पोलीआर्टिकुलर जे.आई.ए. के लिए साबित हो गया था और यह उन मरीजों में इस्‍तेमाल किया जा सकता है जिनमें मेथोट्रेक्‍सेट या अन्‍य बायोलोजिक दवाओं का असर नहीं होता ।

अन्‍य पूरक उपचार

पुनर्वास
पुनर्वास उपचार का एक आवश्‍यक घटक है। इसमें शामिल है उचित व्‍यायाम एवं, जब उपयुक्‍त हो, जोड़ों को एक आरामदायक आसन में बनाये रखने के लिए जोड़ों में स्‍पलिंट ताकि दर्द, जकड़न, मांसपेशियों में खिंचाव और जोड़ों की विकृति को रोका जा सके। यह जल्‍दी शुरु किया जाना चाहिए और जोड़ों और मांसपेशियों को सुधारने में या स्‍वस्‍थ बनाए रखने के लिए नियमित रूप से किया जाना चाहिए।

हड्डीरोग सर्जरी
ओर्थोपीडि‍क सर्जरी के मुख्‍य संकेत जोड़ विनाश के मामले में कृत्रिम ज्‍वाइंट प्रतिस्‍थापना (ज्‍यादातर कूल्‍हे और घुटने) और स्‍थायी कान्‍ट्रेक्‍चर्स के मामले में मुलायम उत्‍तकों की शल्‍य चिकित्‍सा है।

3.3 अपरंपरागत /पूरक चिकित्‍सा के मामले में क्‍या ?
कई पूरक और वैकल्पिक चिकित्‍सा प्रणालियां उपलब्‍ध हैं और यह रोगियों और उनके परिवारों को भ्रमित कर सकती हैं। इन उपचारों को इस्‍तेमाल करने से पहले जोखिम और लाभों के बारे में ध्‍यान से सोचना चाहिए क्‍योंकि इनके सिद्ध लाभ कम हैं और यह समय, बच्‍चों पर बोझ और पैसे के मामले में मंहगे हो सकते हैं। अगर आप पूरक और वैकल्पिक चिकित्‍सा आजमाना चाहते हैं तो इन विकल्‍पों पर अपने बालजोड़ विशेषज्ञ के साथ चर्चा करें। कुछ उपचार पारंपरिक दवाओं के साथ गड़बड़ कर सकते हैं। अधिकांश चिकित्‍सक वैकल्पिक चिकित्‍सा का विरोध नहीं करेंगे अगर आप चिकित्‍सक की सलाह का पालन करें। यह बहुत महत्‍वपूर्ण है कि आप निर्धारित दवाएं लेना बंद न करें। जब कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स जैसी दवाएं बीमारी को नियंत्रण में रखने के लिए जरुरी हों, उस समय इन दवाओं को बंद करना खतरनाक हो सकता है, अगर बीमारी सक्रिय हो । कृपया अपने बाल विशेषज्ञ से दवा से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा करें।

3.4 उपचार कब शुरु करने चाहिएं ?
आजकल अंतर्राष्‍ट्रीय और राष्‍ट्रीय सिफारिशें हैं जो चिकित्‍सकों और परिवारों को उपचार का चयन करने में मदद करती हैं।
हाल ही में अमेरिकन कॉलेज ऑफ रेहयूमेटोलोजी (ए.सी.आर. www.rheumatology.org पर) द्वारा अंतर्राष्‍ट्रीय सिफारिशें जारी की गई हैं और अन्‍य सिफारिशें वर्तमान में पेडियाट्रिक रेहयूमेटोलोजी यूरोपियन सोसाइटी (पी.आर.इ.एस. www.pres.org.uk पर ) द्वारा तैयार की जा रही हैं।
इन सिफारिशों के अनुसार कम गंभीर बीमारी वाले बच्‍चों (जिनमें कुछ जोड़ शामिल हों) का उपचार मुख्‍य रूप से एन.एस.ए.आई.डी. और कोर्टिकोस्‍टीरायॅड इंजेक्‍शन द्वारा किया जाता है।
अधिक गंभीर जे.आई.ए.के लिए (कई जोड़ शामिल हों) मेथोट्रेक्‍सेट (या एक हद तक लैफल्‍यूनोमाईड) पहले प्रशासित की जाती है और अगर यह पर्याप्‍त नहीं है, एक बॉयोलोजिक दवा (मुख्‍य रूप से एन्‍टी टी.एन.एफ.) अकेले या मेथोट्रेक्‍सेट के साथ संयोजन में जोड़ी जाती है। जो बच्‍चे मेथोट्रेक्‍सेट या बायोलोजिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी या असहिष्‍णु हों, उनके लिए अन्‍य बायोलोजिक दवाओं ( एक और एंटी टी.एन.एफ. या अबेटासैप्‍ट) का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

3.5 बाल चिकित्‍सा कानून, लेबल और बंद लेबल उपयोग और भविष्‍य में चिकित्‍सीय संभावनाओं के बारे में क्‍या ?
15 साल पहले तक जे.आई.ए. और कई अन्‍य बाल रोगों के इलाज में इस्‍तेमाल की जाने वाली दवाओं का ब्‍च्‍चों में ठीक से अध्‍ययन नहीं किया गया था। इसका मतलब यह है कि चिकित्‍सक व्‍यक्तिगत अनुभव पर या व्‍यस्‍क रोगियों में किए गए अध्‍ययन पर आधारित दवाएं लिख रहे थे।
दरअसल, अतीत में, बाल चिकित्‍सा में क्लिनिकल परीक्षण मुश्किल थे, मुख्‍य रूप से बच्‍चों में पढ़ाई के लिए धन की कमी और छोटे और गैर पुरस्‍कृत बाल चिकित्‍सा बाजार के लिए दवा कंपनियों द्वारा ध्‍यान में कमी के कारण। स्थिति कुछ साल पहले नाटकीय रूप से बदली। यह संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका में बच्‍चों के लिए बेहतर दवाओं पर अधिनियम और बाल चिकित्‍सा दवाओं के विकास के लिए यूरोपीय संघ (ई.यू.)में अधिनियम पेश होने की वजह से था । इन प्रयासों ने अनिवार्य रूप से दवा कंपनियों को बच्‍चों में भी दवाओं का अध्‍ययन करने के लिए मजबूर किया।
संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका और यूरोपीय संघ की पहल के साथ दो बड़े नेटवर्कों, बाल संधिवातीयशस्‍त्र अंतर्राष्‍ट्रीय परीक्षण संगठन (PRINTO www.printo.it पर), जो दुनिया भर में 50 से अधिक देशों को एकजुट करती है, और बाल संधिवातीयशास्‍त्र सहयोगात्‍मक अध्‍ययन समूह (PRCSG www.prcsg.org पर), उत्‍तरी अमेरिका में स्थित, का बाल संधिवातीयशस्‍त्र विकास में, विशेष रूप से जे.आई.ए.के बच्‍चों के लिए नए उपचारों के विकास पर, विशेष प्रभाव पड़ा है। विश्‍वभर में PRINTO या PRCSG केन्‍द्रों द्वारा इलाज किए गए हजारों बच्‍चों के परिवारों ने इन क्लिनिकल परीक्षणों में भाग लिया है जिसके कारण जे.आई.ए. के बच्‍चों का इलाज उन दवाओं से होता है जिन दवाओं का उनके लिए अध्‍ययन किया गया हो ।कभी-कभी इन अध्‍ययनों में प्‍लेसिबो का इस्‍तेमाल करना पड़ता है( अर्थात एक गोली या तरल पदार्थ जिसमें कोई सक्रिय पदार्थ न हो) ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अध्‍ययन होने वाली दवा नुकसान की तुलना में अधिक लाभ करे।
इस महत्‍वपूर्ण अध्‍ययन की वजह से आज कई दवाएं खासतौर पर जे.आई.ए. के लिए उपलब्‍ध हैं। इसका मतलब यह है कि नियामक अधिकारियों जैसे खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफ.डी.ए.), यूरोपीय चिकित्‍सा एजेंसी (ई.एम.ए.)और कई राष्‍ट्रीय अधिकारियों द्वारा क्लिनिकल परीक्षण से आने वाली जानकारी को संशोधित किया गया है और दवा कं‍पनियों को अनुमति दी गई है कि वे दवा लेबल पर यह लिख सकें कि यह बच्‍चों के लिए प्रभावशाली और सुरक्षित है।
विशेष रूप से जे.आई.ए. के लिए मंजूरी दी गई दवाओं की सूची में शामिल हैं मेथोट्रेक्‍सेट, इटानेरसेप्‍ट, अडालीमुमैब, अबैटासैप्‍ट, टॉसीलीज़ुमैब और कनाकीनुमैब ।
कई अन्‍य दवाओं पर वर्तमान में बच्‍चों पर अध्‍ययन किया जा रहा है, तो आपके बच्‍चों को इस तरह के अध्‍ययन में भाग लेने के लिए उसके/उसकी चिकित्‍सक द्वारा कहा जा सकता है।
ऐसी कई अन्‍य दवाएं हैं जिन्‍हें जे.आई.ए. में इस्‍तेमाल के लिए औपचारिक रूप से मंजूरी नहीं है, जैसे एन.एस.ए.आई.डी., एज़ाथायोप्रीन, साइक्‍लोस्‍पोरिन, एनाकिनरा, इनफ्लीक्‍सीमैब, गोलीमुमैब और सरटोलीज़ुमैब। इन दवाओं को एक अनुमोदित संकेत (बंद लेबल उपयोग कहा जाता है) के बिना भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है और आपके चिकित्‍सक उनके उपयोग का प्रस्‍ताव कर सकते हैं, खासकर अगर कोई अन्‍य उपचार उपलब्‍ध नहीं है।

3.6 चिकित्‍सा के मुख्‍य कुप्रभाव क्‍या हैं ?
जे.आई.ए. में प्रयोग आने वाली दवायें आमतौर पर अच्‍छी तरह सहन की जाती हैं। पेट में जलन एन.एस.ए.आई.डी. का सबसे ज्‍यादा होने वाला कुप्रभाव है (इसीलिए इन्‍हें खाने के साथ खाना चाहिये), व्‍यस्‍कों की तुलना में बच्‍चों में कम होता है। एन.एस.ए.आई.डी. से पित्‍त के एंजाइम्‍स के स्‍तर की खून में वृद्धि हो सकती है परन्‍तु यह एस्प्रिन के अलावा अन्‍य दवाओं के साथ एक दुर्लभ घटना है।
मेथोट्रेक्‍सेट भी अच्‍छी तरह से सहन की जाती है। पेट व आंत में प्रभाव जैसे उल्‍टी, असामान्‍य नहीं हैं। संभावित कुप्रभावों को देखने के लिये समय-समय पर खून की जांच द्वारा पित्‍त के एंजाइम्‍स पर नज़र रखना जरुरी है। जिगर के एंजाइम्‍स प्राय: बढ़ जाते हैं जो दवा की मात्रा कम करने व रोकने से ठीक हो जाते हैं। फोलिक एसिड या फोलिनिक ऐसिड खाने से पित्‍त की खराबी कम हो सकती है। अतिसंवेदनशील प्रतिक्रियाएं मेथोट्रेक्‍सेट से कम ही होती हैं।
सेलेजोपाइरिन काफी अच्‍छी तरह से सहन की जाती है । इसके मुख्‍य कुप्रभाव चमड़ी में दाग, पेट में जलन, जिगर के एंजाइम्‍स का बढ़ना (जिगर विषाक्‍तता), ल्‍यूकोपीनिया(खून के सफेद कणों में कमी जिससे संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती हैं। मेथोट्रेक्‍सेट की तरह समय-समय पर खून की जांच की जरुरत होती है।
उच्‍च खुराक में कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स का लम्‍बे समय तक इस्‍तेमाल कई महत्‍वपूर्ण कुप्रभावों के साथ जुड़ा हुआ है। इसमें शामिल हैं अवरुद्ध विकास और हडिड्यों की कमज़ोरी। अधिक मात्रा में कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स भूख में उल्‍लेखनीय वृद्धि करते हैं जो मोटापा कर सकते हैं। इसलिए बच्‍चों को वो खाना खाने के लिए प्रोत्‍साहित करना चाहिए जिससे बिना ज्‍यादा कैलोरीज़ खाए उनकी भूख संतुष्‍ट हो सके।
बायोलोजिक दवाएं आमतौर पर उपचार के प्रारंभिक वर्षों में अच्‍छी तरह से बर्दाश्‍त की जाती हैं। मरीजों की संक्रमण या अन्‍य प्रतिकूल घटनाओं के लिए ध्‍यान से निगरानी की जानी चाहिए। हालांकि यह समझना जरुरी है कि जे.आई.ए. में इस्‍तेमाल होने वाली सभी दवाओं के साथ अनुभव आकार (केवल कुछ 100 बच्‍चों ने क्‍लीनिकल परीक्षण में भाग लिया) और समय में (बायोलोजिक दवाएं केवल 2000 के बाद से उपलब्‍ध हैं) सीमित हैं। इन कारणों के लिए अब कई जे.आई.ए. रजिस्ट्रियां हैं जो राष्‍ट्रीय ( जैसे कि जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका और अन्‍य) और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ( जैसे कि फार्मा चाइल्‍ड जो कि प्रिंटो और प्रेस की एक परियोजना है) बॉयोलोजिक दवाएं ले रहे बच्‍चों को फोलो करती हैं ताकि जे.आई.ए. के बच्‍चों की बारीकी से निगरानी की जा सके और ये देखा जा सके कि क्‍या लंबे समय में सुरक्षा की घटनाएं हो सकती हैं (दवाओं को कई वर्षों तक लेने के बाद)।

3.7 इलाज कितने समय तक चलना चाहिए ?
जब तक रोग रहता है उपचार चलते रहना चाहिए। रोग की अवधि अप्रत्‍याशित है; अधिकांश मामलों में जे.आई.ए. कुछ से कई सालों के बाद स्‍वत: ठीक हो जाता है। जे.आई.ए. में अक्‍सर आवधिक सुधार और खराबी हो सकते हैं, जिससे चिकित्‍सा में महत्‍वपूर्ण बदलाव करने पड़ते हैं। पूर्ण रूप से उपचार तभी बंद किया जाता है जब गठिया एक लंबे समय के लिए शांत हो (6-12 महीने या उससे अधिक)। हालांकि दवा बंद करने के बाद पुनरावृति की संभावना पर कोई निश्चित जानकारी नहीं है। चिकित्‍सक आमतौर पर जे.आई.ए. के बच्‍चों को तब तक देखते हैं जब तक वे व्‍यस्‍क नहीं हो जाते, भले ही गठिया शान्‍त हो।

3.8 नेत्र परीक्षा (स्लिट-लैम्‍प परीक्षा) कितनी बार और कब तक?
जिन मरीजों में जोखिम हो (विशेषकर यदि ए.एन.ए. सकारात्‍मक हों), उनमें स्लिट लैम्‍प द्वारा परीक्षा कम से कम हर तीन महीनें में एक बार होनी चाहिए। जिन मरीजों में ईरीडोसाइकलाइटिस विकसित हो चुका है उनमें आंखों की बीमारी की गंभीरता के हिसाब से जांच जल्‍दी होनी चाहिए।
ईरीडोसाइकलाइटिस होने का खतरा समय के साथ कम हो जाता है; हालांकि ईरीडोसाइकलाइटिस गठिया शुरु होने के कई सालों के बाद भी विकसित हो सकता है। इसलिए कई वर्षों तक आंखों की जॉंच करवाना समझदारी है, भले ही गठिया ठीक हो।
एक्‍यूट यूविआइटिस जो गठिये और एंथीसाइटिस के मरीजों में हो सकता है, रोगसूचक (लाल आंखें, आंख में दर्द और आंखों में रोशनी से असहजता या फोटोफोबिया) है। अगर इस तरह की शिकायतें हैं, तो शीघ्र आंखों की जांच की आवश्‍यकता है। ईरीडोसाइकलाइटिस के विपरीत, शीघ्र निदान के लिए समय-समय पर स्लिट लैम्‍प द्वारा परीक्षा की कोई जरुरत नहीं है।

3.9 गठिये के दीर्घकालिक विकास (रोग का निदान) क्या है?
पिछले कुछ सालों में गठिये के इलाज में काफी सुधार आया है। परन्‍तु यह इस बात पर निर्भर है कि गठिया किस तरह का है और कितना गंभीर है और कितनी जल्‍दी और सही इलाज शुरु किया गया है। नई दवाएं और बॉयोलोजिक एजेंट्स बनाने के लिए तथा इलाज सब बच्‍चों को उपलब्‍ध कराने के लिए अनुसंधान जारी है। पिछले दस सालों में गठिये के निदान में काफी सुधार हुआ है। कुल मिलाकर लगभग 40 प्रतिशत बच्‍चे बीमारी शुरु होने के 8-10 साल के भीतर दवाईयों से और बीमारी के लक्षणों से छुटकारा पा सकते हैं; ओलिगोआर्टिकुलर परसिस्‍टेंट और सिस्‍टेमिक तरीके की बीमारी में निदान का मौका सबसे ज्‍यादा है।
सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. में निदान काफी अस्‍थायी होता है। लगभग आधे बच्‍चों में गठिये के लक्षण काफी कम होते हैं और बीमारी मुख्‍य रूप से समय-समय पर बढ़ जाती है। हालांकि अक्‍सर यह बीमारी अपने आप ही पूर्णतया ठीक हो जाती है । बाकी आधे बच्‍चों में जोड़ों की तकलीफ ज्‍यादा होती है और सिस्‍टेमिक लक्षण धीरे-धीरे खत्‍म हो जाते हैं। इन बच्‍चों में जोड़ों को काफी नुकसान होता है । इनमें से कुछ बच्‍चों में सिस्‍टेमिक और जोड़ों के लक्षण, दोनों ही रहते हैं । इन बच्‍चों की बीमारी सबसे गंभीर होती है और इनमें एमाइलोडोसिस हो सकता है, जोकि एक गंभीर समस्‍या है और इसमें इम्‍यूनोसप्रैसिव चिकित्‍सा की आवश्‍यकता होती है । आई.एल-6 विरोधी (टॉसिलिजुमाब) और आई.एल.-1 विरोधी (एनाकिनरा और कनाकिनुमैब ) दवाइयों के विकास से इस बीमारी के लम्‍बे निदान में सुधार की संभावना है।
रेहयूमेटॉयड फैक्‍टर पोलिआर्टिकुलर जे.आई.ए. में जोड़ों का प्रगतिशील कोर्स होता है जिससे जोड़ों में गंभीर नुकसान होता है। यह बीमारी बड़े लोगों की रेहयूमेटॉयड फैक्‍टर (आर.एफ.) पोजि़टिव रेहयूमेटॉयड गठिये जैसी है ।
आर.एफ. निगेटिव पोलिआर्टिकुलर जे.आई.ए. लक्षण और निदान, दोनों में जटिल होता है। हालांकि आर.एफ. पॉजि़टिव बीमारी के मुकाबले इसका निदान काफी बेहतर होता है; सिर्फ लगभग एक चौथाई बच्‍चों में जोड़ों का नुकसान होता है।
ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए. जब कुछ जोड़ों तक ही सीमित रहता है जब उसका निदान अच्‍छा होता है (जिसे परसिस्‍टेंट ओलिगोआर्थराइटिस कहा जाता है)। यदि यह बीमारी ज्‍यादा जोड़ों को प्रभावित करती है( एक्‍सटेंडिड ओलिगोआर्थराइटिस ) तो इसका परिणाम आर.एफ नेगिटिव पोलिआर्टिकुलर जे.आई.ए. जैसा होता है।
सोरायटिक जे.आई.ए. के काफी मरीजों की बीमारी ओलिगोआर्टिकुलर जे.आई.ए. जैसी होती है जबकि बाकियों की बीमारी व्यस्‍कों की सोरायटिक गठिये जैसी होती है।
एन्‍थीसोपैथी के साथ होने वाले जे.आई.ए. का निदान भी परिवर्तनशील होता है। कुछ रोगियों में यह पूरी तरह से ठीक हो जाता है, परन्‍तु कुछ मरीजों में यह बीमारी बढ़कर सेक्रोइलिएक जोड़ को प्रभावित कर सकती है।
वर्तमान में कोई ऐसा लक्षण या जांच नहीं है जिससे चिकित्‍सक शुरु में ही बीमारी की गंभीरता के बारे में बता सके। ऐसे भविष्‍यवक्‍ताओं का काफी महत्‍व हो सकता है क्‍योंकि इनसे ऐसे मरीजों का चयन किया जा सकता है जिन्‍हें शुरुआत से ही ज्‍यादा आक्रामक उपचार दिया जा सके । अन्‍य प्रयोगशाला मार्कर्स पर अभी भी शोध चल रहा है जिससे यह पता चल सके कि मेथोट्रेक्‍सेट या बॉयोलोजिक एजेंट्स को कब बंद किया जाना चाहिए।

3.10 ईरीडोसाइकलाइटिस का बाद में क्‍या होता है ?
ईरीडोसाइकलाइटिस का अगर इलाज न किया जाए तो इसके परिणाम काफी गंभीर हो सकते हैं जैसे कि आंखों के लेंस पर धुंधलापन आ जाना(मोतियाबिंद) या आंखों की रौशनी चले जाना। हालांकि, अगर शुरु में ही इसका इलाज कर दिया जाए तो ये लक्षण सोजि़श को नियंत्रित करने वाली और पुतली फैलाने वाली आंख में डालने वाली दवाई से खत्‍म किए जा सकते हैं। यदि आंख में डालने वाली दवाई से ये लक्षण नियंत्रित नहीं होते तो बॉयोलोजिक इलाज किया जा सकता है। क्‍योंकि इलाज हर बच्‍चे में अलग असर दिखाता है, इसलिए कोई स्‍पष्‍ट सबूत नही है कि कौन सी दवाई सबसे बेहतर है। बीमारी का जल्‍दी पता लगाना ही सबसे जरुरी है। लंबे समय तक कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स देने से भी मोतियाबिंद हो सकता है, ज्‍यादातर सिस्‍टेमिक जे.आई.ए. के मरीज़ों में।


4. रोज़मर्रा की जिंदगी

4.1 क्‍या खान-पान से बीमारी पर कोई असर होगा ?
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि खान-पान से इस बीमारी पर कोई असर होगा । आमतौर पर बच्‍चे की उम्र के हिसाब से एक संतुलित और सामान्‍य खाना लेना चाहिए। कोर्टिकोस्‍टीरॉयड्स भूख भी बढ़ाते हैं, इसलिए इन दवाइयों के चलते कम खाना लेना चाहिए और ज्‍यादा कैलोरी और सोडियम वाला खाना नहीं खाना चाहिए।

4.2 क्‍या वातावरण से इस बीमारी पर कोई असर होता है ?
वातावरण से इस बीमारी पर कोई असर नहीं होता है। हालांकि सर्दी में सुबह के समय की अकड़न लम्‍बे समय तक रह सकती है।

4.3 व्‍यायाम और शारीरिक थेरेपी कुछ असर कर सकती है ?
व्‍यायाम और शारीरिक थेरेपी करने का मकसद बच्‍चे को दिनभर की क्रियाओं में शामिल करना और सामाजिक कार्य को पूरा करना है। इससे एक सक्रिय स्‍वस्‍थ जीवन जीने में सहायता होती है। इन लक्ष्‍यों को पूरा करने के लिए स्‍वस्‍थ जोड़ और मांसपेशियों का होना जरुरी है, जोकि व्‍यायाम और शारीरिक क्रियाओं से प्राप्‍त किए जा सकते हैं। स्‍वस्‍थ मांसपेशियों से बच्‍चा स्‍कूल की गति‍विधियों जैसे कि खेलकूद इत्‍यादि में भाग ले सकता है। उपचार और घर में किये जाने वाले व्‍यायाम से शक्ति और तंदरुस्‍ती के स्‍तर पर पहुंचा जा सकता है।

4.4 क्‍या खेलकूद की अनुमति है ?
खेल खेलना एक स्‍वस्‍थ बच्‍चे की जिंदगी का जरुरी हिस्‍सा होता है। जे.आई.ए. के इलाज का एक जरुरी हिस्‍सा यह भी है कि बच्‍चा एक आम जिंदगी जिए और अपनी उम्र के बाकी बच्‍चों से अपने आप को अलग न समझे। इसलिए आमतौर पर यह माना जाता है कि बच्‍चों को खेल में हिस्‍सा लेने देना चाहिए और यह विश्‍वास होना चाहिए कि अगर इसमें चोट लगती है तो वो रुक जाएंगे। खेल के शिक्षक को खेल के दौरान लगनेवाली चोटों से बचाए रखने का सुझाव देना चाहिए। हालांकि जोड़ पर तनाव पड़ना उसके लिए कोई फायदेमंद नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि थोड़ा बहुत तनाव उस मानसिक तनाव से ब‍हुत कम है जो बच्‍चे को खेल खेलने से रोक देने से मिलता है। यह निर्णय बच्‍चे को अपने पर निर्भर होने और इस बीमारी द्वारा दी जाने वाली कमियों से लड़ने की क्षमता देता है।
ऐसे खेल जिनमें जोड़ों पर तनाव कम होता है, जैसे कि तैरना और बाइक चलाना, को ज्‍यादा महत्‍व दिया जाना चाहिए।

4.5 क्‍या बच्‍चा लगातार स्‍कूल जा सकता है ?
यह अति आवश्‍यक है कि बच्‍चा रोज़ स्‍कूल जाए। कुछ कारण स्‍कूल जाने में बाधा डाल सकते हैं जैसे चलने में परेशानी, थकान, दर्द व जकड़न। इसलिए स्‍कूल में सभी को बच्‍चे की सीमाओं के बारे में अवगत कराना जरुरी है ताकि बच्‍चे को उचित सुविधाएं जैसे एर्गोनोमिक फर्नीचर और लिखने के लिए उपकरण प्रदान किए जा सकें। शारीरिक शिक्षा और खेल में भागीदारी, रोग के कारण हुई गतिशीलता की सीमाओं के अनुसार की जानी चाहिए। स्‍कूल की टीम को जे.आर.ए. के बारे में अवगत कराना बहुत जरुरी है तथा यह बताना कि इस बीमारी में अप्रत्‍याशित रिलेप्‍स हो सकते हैं। घर शिक्षण के लिए योजनाएं जरुरी हो सकती हैं। स्‍कूल में अध्‍यापक को बच्‍चे की जरुरतों के बारे में समझाना जरुरी है: जैसे उचित मेज, लगातार मूवमेंटस जिससे कि अकड़न न हो और लिखाई में आने वाली परेशानी । जब भी संभव हो रोगी को जिम की कक्षा में भाग लेना चाहिए; ऐसे में उन्‍हीं सावधानियों को रखना चाहिए जो कि खेलकूद के लिए बताई गई हैं।
स्‍कूल बच्‍चे के लिए वैसा ही होता है जैसा व्‍यस्‍कों के लिए काम की जगह: यहां इंसान स्‍वछंद व कार्यकारी व्‍यक्ति बनता है। मां-बाप और अध्‍यापक को मिलकर यह कोशिश करनी चाहिए कि बीमार बच्‍चा स्‍कूल की ज्‍यादा से ज्‍यादा गतिविधियों में सामान्‍य रूप से भाग लें जिससे वह पढ़ाई में आगे बढ़े, दोस्‍तों के साथ मिले-जुले व दोस्‍त भी उसे हौंसला दें और स्‍वीकार करें।

4.6 क्‍या टीकाकरण कर सकते हैं ?
यदि मरीज को प्रतिरक्षा क्षमता घटाने वाली दवाएं (स्‍टीरॉयड्स, मेथोट्रेक्‍सेट, बॉयोलोजिक एजेंट्स) दिए जा रहे है तो उन्‍हें जीवाणु सहित टीके (जैसे रुबेला, खसरा, पोलियो(सेबिन), बी.सी.जी., एंटी पेरोटाइटिस) नहीं देने चाहिए क्‍योंकि इनसे संक्रमण फैल सकता है। ये टीके एसी दवाईयां शुरु करने से पहले दिये जाने चाहिएं। टीके जिनमें जीवाणु नहीं होते और सिर्फ प्रोटीन होता है जैसे टेटनस, गलघोटू, पोलियो (साक), हेपेटाइटिस, काली खांसी, न्‍यूमोकोकस, हिमोफिलस, मेनिंगोकोकस) दिये जा सकते हैं; इसका सिर्फ एक ही खतरा है कि प्रतिरक्षा क्षमता कम होने की वजह से हो सकता है कि इन टीकों का असर ही न हो। हालांकि यह सुझाव दिया जाता है कि बच्‍चों का टीकाकरण किया जाना चाहिए, चाहे असर कम हो।

4.7 क्‍या बच्‍चा बड़ा होकर सामान्‍य जिंदगी जी पाएगा ?
यह इलाज का सबसे बड़ा उद्देश्‍य है और अधिकतर बच्‍चों में ऐसा ही होता है। पिछले कुछ सालों में इलाज में प्रगति हुई है व नई दवाओं से भविष्‍य में इलाज और भी बेहतर होगा। जोड़ों को खराब होने से रोकने के लिए दवाई के साथ कसरत भी जरुरी है।
बच्‍चे व उसके परिवार पर होने वाले मानसिक प्रभाव पर भी विशेष ध्‍यान देना चाहिए। जे.आई.ए. जैसी लम्‍बे दौरान वाली बीमारी पूरे परिवार के लिए एक बड़ी चुनौती के समान है। यदि मां-बाप बीमारी से नहीं जूझ सकते हैं तो बच्‍चे के लिए और भी कठिन हो जाता है। कुछ माता-पिता बच्‍चे के साथ बहुत ज्‍यादा जुड़ जाते हैं, ताकि उनके बीमार बच्‍चे को कोई हानि न पहुंचे ।
माता-पिता को एक सकारात्‍मक सोच और रवैये के साथ बच्‍चों को प्रोत्‍साहन व मदद देनी चाहिये ताकि बच्‍चा बीमारी के बावजूद भी एक स्‍वच्‍छ जीवन व्‍यतीत कर सके और बीमारी से आने वाली परेशानियों का सामना कर सके, अपने साथियों के साथ ठीक तरह से रह सके और एक संतुलित व्‍यक्तित्‍व का विकास कर सके ।
बाल संधिवात रोग विशेषज्ञ भी मानसिक मदद प्रदान कर सकते हैं।
परिवार संघ या चेरिटीज़ भी बीमारी से सामना करने में मदद कर सकती हैं।


 
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